एक ऑल-फिमेल ट्रैकिंग एजैंसी इस फील्ड में पुरुषों के बाहुल्य को चुनौती दे रही है। विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रंखला पर पर्यटकों को सैर करवाने वाली महिला गाइड्स लैंगिक समानता की चुनौती को पूरा करने की ओर कदम बढ़ा रही हैं।
तब वे ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि उनमें से ही एक महिला माऊंटेन गाइड बन सकती है।
आज थिनलास उन बातों को याद करके हंसती हैं। 2009 में उसने लेह में अपनी ट्रैकिंग एजैंसी की स्थापना की थी। अब तक वह 30 महिलाओं को रोजगार दे चुकी है। वह लद्दाख की महिलाओं को काम करने के लिए प्रेरित करना चाहती हैं ताकि उन्हें भी पुरुषों के समान ही अवसर प्राप्त हों।
लेह में देश के अधिकतर इलाकों की तुलना में महिलाओं का स्तर हल्का-सा बेहतर कहा जा सकता है।
थिनलास कहती हैं, “बेटी के जन्म पर हम बेटों के जन्म की तरह ही खुश होते हैं।” हालांकि, अभी भी वहां काम का विभाजन बेहद पारम्परिक है। पुरुष सेना में जाते हैं, जबकि महिलाओं से घर तथा बच्चों को सम्भालने की जिम्मेदारी निभाने की ही अपेक्षा की जाती है।
ऐसे माहौल में एक महिला के लिए अपना काम शुरू करना बड़ी चुनौती थी। थिनलास लेह के पश्चिम में 15 किलोमीटर दूर स्थित एक फार्म पर बड़ी हुई हैं जहां पहाड़ों पर चढना उनके लिए रोजाना की बात थी। पढाई के लिए वह लेह में रहने लगीं। उनके साथ पढ़ने वाले कई लड़के छुट्टियों के दौरान माऊंटेन गाइड के रूप में काम करते थे परंतु इस काम के लिए उनके आवेदन को नकार दिया गया। उनका कहना था कि यह काम बेहद चुनौतीपूर्ण है और वैसे भी एक महिला किसी समूह का नेतृत्व नहीं कर सकती है।
तभी थिनलास ने फैसला किया कि वह अपने स्तर पर अनुभव प्राप्त करेगी। इसके लिए वह अपने घर के आस-पास पर्यटकों तथा अन्य छात्रों को ट्रैकिंग पर ले जाने लगी।
उसकी एक महिला क्लाइंट ने उसे बताया कि किस तरह पुरुष गाइड के परेशान करने पर उसे ट्रैकिंग बीच में खत्म करनी पड़ी थी। लेह भी यौन उत्पीड़न के मामलों में कोई अपवाद नहीं है। उसे एहसास हुआ कि कई महिला पर्यटक महिला गाइड्स के साथ ही ट्रैकिंग करना पसंद करेंगी, उसने अपनी ट्रैकिंग एजैंसी खोलने का फैसला कर लिया।
हिम्मत जुटा कर उसने अपने पिता से इस काम के लिए पैसे देने को कहा और जल्द ही उसकी ट्रैकिंग एजैंसी ‘द लद्दाखी वूमन्स ट्रैवल कम्पनी‘ (ladakhiwomenstravel.com) की स्थापना हो गई।
आज उसकी एजैंसी में 15 महिला गाइड्स तथा 15 कुली हैं। उसकी एजैंसी कई तरह के टूर करवाती है जिनमें कम दूरी से लेकर बेहद कठिन रास्तों से गुजरने वाले चुनौतीपूर्ण टूर भी शामिल हैं।
साल में यह एजैंसी कोई 100 टूर आयोजित करती है। इनमें पुरुष भी आ सकते हैं यदि उनके साथ कोई महिला हो। उनकी एजैंसी में गाइड बनने के लिए आवेदन देने वालों को पहले बतौर कुली प्रशिक्षण लेना पड़ता है।
थिनलास फिटनैस पर विशेष ध्यान देती है क्योंकि कुलियों को पर्यटकों का भारी सामान ले जाना होता है और टूर कई दिनों तक लगातार जारी रह सकता है।
प्रशिक्षुओं को बौद्ध धर्म, लद्दाख के बौद्ध मठों, इलाके में पाई जाने वाली वनस्पतियों के मूल ज्ञान से लेकर किसी पर्यटक के ऊंचाई की वजह से बीमार पड़ने पर दी जाने वाली प्राथमिक चिकित्सा के बारे में भी सिखाया जाता है।
यदि उनकी अंग्रेजी अच्छी हो तो दूसरे साल में कुल ट्रेनी गाइड बन सकती हैं। तीसरे साल में माऊंटेन गाइड बनने के लिए उनका प्रशिक्षण पूरा हो जाता है।
26 वर्षीय आंगमो सेतान इस एजैंसी में एक माऊंटेन गाइड हैं। उसे अपना काम पसंद है और वह खुश है कि आज वह इतनी आत्मनिर्भर है कि अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुन सकती है।
थिनलास बताती है कि अब कुछ अन्य एजैंसियां उनकी कम्पनी के माध्यम से ही महिला गाइड्स को बुक करने लगी हैं।