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मुम्बई की ऐतिहासिक विरासत

मुम्बई की ऐतिहासिक विरासत

चकाचौंध भरी जिंदगी के लिए मशहूर मुम्बई में कई ऐसी धरोहरें हैं जिनके बारे में लोगों को बेहद कम जानकारी है। इन स्थलों में फिल्म थिएटर (टॉकीज), भोजनालय से लेकर दुकानें तक शामिल हैं। यहां आपको मुम्बई के ऐसे कुछ खास स्थलों के बारें में बता रहे हैं जिनमें से कुछ बंद हो चुके हैं तो कुछ का सफर अभी भी जारी है।

मुम्बई की ऐतिहासिक विरासत: स्थान जो बंद हो गए

स्ट्रैंड बुक स्टोर:

जिस किताबों की दुकान ने दशकों तक मुम्बई वासियों के जीवन पर राज किया, वह अब नहीं है। इसी वर्ष 28 फरवरी को यह बंद हो गया। 1948 में स्ट्रैंड सिनेमा के लाऊंज में एक किताबों के एक स्टॉल के रूप में इसकी शुरुआत हुई थी और 1956 में कुछ किलोमीटर दूर फोर्ट की शांत गलियों में दुकान के रूप में यह खुला। किताबों की यह प्रतिष्ठित दुकान पद्मश्री टी.एन. शानबाग की मेहनत का नतीजा थी जिसने 70 वर्ष से अधिक वक्त तक पुस्तक प्रेमियों की सेवा की। विभिन्न विषयों की यहां लाखों किताबें थीं।

कैफे समोवर:

जहांगीर आर्ट गैलरी में कई मुम्बई वासी कलाकृतियों को निहारने नहीं बल्कि कैफे समोवर की वजह से वहां जाया करते थे। 2015 में बंद होने से पहले यह कैफे मुंबई की रचनात्मक प्रतिभाओं का ठिकाना हुआ करता था। 1964 में उषा खन्ना द्वारा शुरू किए गए इस कैफे को इसके कलात्मक आकर्षण के लिए भी उतना ही पसंद किया जाता था जितना कि यहां मिलने वाली पुदीना चाय, पकौड़ा प्लैटर और कीमा परांठा के लिए।

रिदम हाऊस:

मुंबई के संगीत मंदिर को भी अंततः डिजिटलीकरण का खमियाजा भुगतना पड़ा जो फरवरी 2016 में बंद हो गया। 1940 के दशक की शुरुआत में सुलेमान नेन्सी ने इसकी स्थपना की थी। कल्याणजी – आनंदजी, शम्मी कपूर, पंडित रविशंकर, पिटर आंद्रे, जाकिर हुसैन और ए.आर. रहमान जैसे नाम इसके साथ जुड़े रहे हैं।

न्यू एम्पायर:

मूल रूप से 1908 में एक लाइव थिएटर के रूप खोले गए इस थिएटर में तब नाटकों का मंचन होता था। 1937 में इसका जीर्णोद्धार आर्ट डैको स्थापत्य शैली में किया गया था। कोशिशों के बावजूद इसे बचाया नहीं जा सका और मार्च 2014 में इसे बंद कर देना पड़ा। यह मुम्बई के सबसे पुराने सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों में से एक था।

द वे साइड इन:

लकड़ी की एंटिक अलमारियों, चटख लाल रंग के टेबलपोश, विंटेज क्रॉकरी तथा चमचमाती कटलरी वाले कलसी प्लेस के रूप में जाने जाते इस रेस्तरां को वक्त के साथ बदलना पड़ा। 2002 में यह चाइनीज रेस्तरां में बदल गया। इसके 4 नम्बर टेबल पर बैठ कर ही डॉ. बाबासाहेब अम्बेदकर ने 1948 में भारतीय संविधान के बड़े हिस्से पर काम किया था।

मुम्बई की ऐतिहासिक विरासत: स्थान जो आज भी हैं

काला घोड़ा कला केंद्र:

काला घोड़ा मुम्बई का प्रमुख कला केंद्र है जहां शहर की अनेक हैरिटेज बिल्डिंग्स, संग्रहालय, कलादीर्घाएं तथा शैक्षणिक संस्थान मौजूद हैं। आज यह एक प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र भी बन चूका है और प्रत्येक वर्ष फरवरी में यहां प्रख्यात काला घोड़ा काला महोत्सव आयोजित होता है। किंग एडवर्ड सप्तम (तत्कालीन प्रिंस ऑफ वेल्स) की घोड़े पर सवार काले पत्थर की मूर्ति को इलाके से 1965 में हटा दिया गया था। 2017 में ‘काला घोड़ा’ यहां लौट आया जब पहली प्रतिमा जैसे दिखने वाले घोड़े की सवार रहित एक नई मूर्ति यहां लगाई गई जिसे वास्तुकार अल्फाज मिलर द्वारा डिजाइन और श्रीहरी भोसले द्वारा बनाया गया है।

एशियाटिक लाइब्रेरी और टाऊन हॉल:

एशियाटिक लाइब्रेरी और टाऊन हॉल मुम्बई में नियो क्लासिकल स्थापत्य कला का पहला उदाहरण है। 1833 में बना टाऊन हॉल शहर का सांस्कृतिक केन्द्र था जिसकी उत्तरी शाखा मुंबई की एशियाटिक सोसाइटी द्वारा संचालित सदस्यों के लिए आरक्षित लाइब्रेरी थी। वक्त के साथ लाइब्रेरी खस्ताहाल होने लगी थी परंतु टाऊन हॉल और लाइब्रेरी का 2016-17 में अच्छे से जीर्णोद्धार किया गया और कुछ बदलावों के बावजूद आज भी इस इमारत का मूल चरित्र बरकरार है।

पृथ्वी थिएटर:

बेशक यह बहुत पुराना नहीं है, यह मुंबई के सांस्कृतिक परिदृश्य का अहम हिस्सा रहा है। पृथ्वीराज कपूर ने 1944 में एक ट्रैवलिंग थिएटर कम्पनी के रूप में पृथ्वी थिएटर की स्थापना की थी। कम्पनी 16 साल चली और पृथ्वी थिएटर के लिए स्थायी ठिकाना बनाना उनका सपना था। शशि कपूर और उनकी पत्नी जैनिफर कपूर ने उनका सपना पूरा किया और तब यह थिएटर अस्तित्व में आया।

लियोपोल्ड कैफे:

1871 में ईरानियों द्वारा स्थापित यह एक कुकिंग ऑयल की थोक की दुकान थी। पर्यटकों तथा स्थानीय लोगों के पसंदीदा कैफे का रूप लेने से पहले यहां कई परिवर्तन हुए। नवम्बर 2008 के भयानक आतंकवादी हमले के दौरान कैफे को गोलियों तथा हथगोलों से निशाना बनाया गया था जिसमें कई लोगों की जान गई और कई घायल हुए थे।

हालांकि, हमले के कुछ दिन बाद कैफे फिर से खोल दिया गया था और आज यहां पहले से भी अधिक चहल-पहल रहती है। आतंकी हमले के कुछ चिन्ह जैसे गोलियों के निशान यहां आज भी देखे जा सकते हैं।

कैफे मोंडेगर:

यह एक और ईरानी कैफे है जिसे 1932 में मैट्रो हाऊस में अपोलो होटल के रिसैप्शन एरिया में शुरू किया गया था। मुंबई में ज्यूकबॉक्स पेश करने वाले इस पहले कैफे का जीर्णोद्धार 1990 के दशक की शुरुआत में हुआ था।

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