राजधानी गैंगटॉक तथा आस-पास:
सिक्किम की राजधानी गैंगटॉक तथा उसके करीब अनेक दर्शनीय स्थल है। रूमटेक, एनची तथा गुंजजांग जैसे यहां अनेक मठ भी देखने लायक हैं। गंगटोक का एक खास आकर्षण नामग्याल प्रौद्योगिकी संस्थान है जहां आप बौद्ध धर्म और सिक्किम के इतिहास के बारे में बहुत कुछ जान तथा समझ सकते हैं।
गंगटोक से कुछ किलोमीटर दूर स्थित दर्शनीय स्थलों में गणेश टोक भी है जहां से आप कंचनजंगा पर्वत की चोटी को देख सकते हैं। इसके अलावा हनुमांक टोक तथा तशी व्यू प्वाइंट भी हैं। गंगटोक से 92 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है नामची। तिब्बती भाषा में इसका मतलब है ‘आकाश का शीर्ष’। समुद्र तल से 1,675 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह राज्य के सबसे भव्य शहरों में से एक है।
यहां अनेक बौद्ध मठ स्थित हैं जैसे कि नामची मठ आदि। शहर में एक 108 फुट की भगवान शिव की एक प्रतिमा भी है। नामची की ताजगी भरी हवा और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध वनस्पतियों की सुगंध से सम्पन्न है। हिमाच्छादित पहाड़ों, जंगलों और पहाड़ी घाटियां इसे सिक्किम के सबसे खूबसूरत स्थलों में शुमार करती हैं।
उत्तर की सैर:
गंगटोक की सैर के बाद उत्तर की ओर सफर की तैयारी कर सकते हैं। चूंकि सिक्किम का अधिकांश हिस्सा विशेष रूप से उत्तर सिक्किम सीमा क्षेत्र है, वहां यात्रा करने का एकमात्र तरीका ट्रैवल एजैंसी की सेवा लेना है क्योंकि यहां आने-जाने के लिए आपको सेना और पर्यटन विभाग से अनुमति की आवश्यकता होती है।
लाचेन से आगे चीन के साथ लगती भरतीय सीमा से लगभग 5 से 9 किलोमीटर दूर स्थित गुरुडोंगमार झील तथा काला पत्थर स्थित हैं। गुरुडोंगमार झील 17,100 फुट की ऊंचाई के साथ दुनिया की शीर्ष 15 उच्चतम झीलों में से एक है जो सिक्किम और भारत में सबसे ऊंची 18,000 फुट ऊंचाई पर चोलमू झील भी सिक्किम में स्थित है।
झील पर जाने से पहले निकटतम गांव लेकट्ठस थंगू में ठहर सकते हैं। यह भी एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। इस झील का बहुत धार्मिक महत्त्व भी है और वहां से माउंट सिनिलचु और खांगेन्दोंगोंगा के सुंदर दृश्य भी नजर आते हैं। बर्फ से ढंके पहाड़ों तथा साफ बर्फीले पानी वाली इस झील को बहुत पवित्र माना जाता है झील तीस्ता नदी का एक स्रोत है जो बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले सिक्किम, पश्चिम बंगाल और बंगलादेश से होकर बहती है।
झील के नजदीक एक ‘सर्वधर्म स्थल’ है जो सभी धर्मों की पूजा का एक लोकप्रिय स्थान है।
फिर लाचूंग से जीरो प्वाइंट, यमथांग घाटी तथा भीमा अभयारण्य तक भी आसानी से पहुंच सकते हैं।
जुलुक की ओर:
सिक्किम यात्रा के दौरान नाथुला दर्रे (भारत–चीन सीमा) तथा उससे भी आगे जुलुक (पुराना रेशम मार्ग) तक भी अवश्य जाएं।
जुलुक को जाते हुए रास्ते में चांगू झील, नाथुला दर्रा, बाबा हरभजन सिंह मंदिर, नाथांग घाटी पर ठहरते हुए जाएं। रास्ते में ही भारत-चीन में सामान की अदला-बदली के लिए बना शेरथांग बाजार भी है।
जुलुक तक पहुंचने से पहले ठहरने के लिए लुंगटंग का ढोपिताड़ा गांव उपयुक्त रहेगा। इस छोटे से गांव में केवल 6 लोग रहते हैं।
जुलुक भी एक बेहद खूबसूरत स्थान है जहां पहुंच कर आपको लगेगा जैसे कि प्रकृति ने खुल कर इसे नैसर्गिक सुंदरता का वरदान दिया है। यहां पहुंचने के बाद यहां तक पहुंचने में हुई सारी थकान कुछ ही मिनटों में गायब हो जाएगी।
पेलिंग की सैर:
जुलुक से लौट कर गंगटोक आकर पश्चिम सिक्किम में स्थित कंचनजंगा की तलहटी पर पेलिंग तक टैक्सी से 7 घंटे में पहुंच सकते हैं। इसके आस-पास स्थित दर्शनीय स्थलों में खेचेओपालरी झील, पेमयांग्सी मठ तथा सिंचर पुल शामिल हैं।
इसके बाद यहां से सिक्किम के पहली राजधानी युकसम भी अवश्य जाएं जहां सिक्किम के पहले चोग्याल राजा की ताजपोशी हुई थी।
सुनिश्चित करें कि आप सिक्किम में कुछ खास स्थानीय व्यंजनों का स्वाद चखना भी न भूलें। यहां कुछ असली मोमोज, थुक्पा तथा गुनड्रक आपको मिल सकते हैं।
कैसे पहुंचें:
दिल्ली तथा देश के अन्य प्रमुख शहरों से बागडोगरा तक विमान सेवा उपलब्ध है। जहां से सिलीगुड़ी से लगभग 7 की.मी. दूर है जहां से बस अथवा टैक्सी करके गंगटोक पहुंच सकते हैं।
ट्रेन से जाना हो तो न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन तक आसानी से पहुंच सकते हैं। वहां से लगभग 11 किलोमीटर दूर सिलीगुड़ी है।