फिल्म ‘दिल से‘ में ट्रेन पर शाहरुख खान तथा मलायका अरोड़ा खान पर खासा लोकप्रिय हुआ गीत ‘छैयां छैयां‘ फिल्माया गया था। एक-दूसरे से केवल 18 किलोमीटर दूर स्थित ऊटी तथा कन्नूर अपने चाय बागानों के लिए भी प्रसिद्ध हैं। निलगिरी पहाड़ियों के इन दो सुंदर हिल स्टेशनों की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है।
कन्नूर के घुमावदार चाय एस्टेट्स तथा हर ओर बिखरी हरियाली बेहद आकर्षक है। यहां पहले चाय बागान के अस्तित्व में आने के बारे में भी एक दिलचस्प कहानी सुनने को मिलती है। 1819 में जब कोयंबटूर के स्कॉटिश कलैक्टर ने इस हिल स्टेशन का दौरा किया तो उन्होंने पाया कि पीने के लिए यहां चाय ही नहीं थी। तो उसने यहां खुद चाय उगने का फैसला किया और आज चाय के बागान यहां कई एकड़ में फैले हैं।
यहां के चाय कारखानों की यात्रा भी जरूर करें जहां आप चाय बनाने की पूरी प्रक्रिया करीब से देख सकते हैं – चाय की पत्तियों को तोड़ने से लेकर कैसे यह अंततः उस चायपत्ती में बदल जाती है जिसकी चुस्कियों के बिना शायद ही किसी भारतीय के दिन की शुरुआत होती होगी। निलगिरी की चाय दुनिया की बेहतरीन चायों में से एक जाती है, ऐसे में फैक्टरी से निकलते हुए चायपत्ती का कम से कम एक पैकेट लेना न भूलें।
चूंकि, यहां चाय दार्जिलिंग की तुलना में अधिक ऊंचे पहाड़ों पर उगाई जाती है, इसमें एक अलग ही तरह की शानदार सुगंध होती है। हालांकि, कन्नूर उतना चहल-पहल हिल स्टेशन नहीं है जितना कि ऊटी लेकिन इसका अपना एक अलग ही आकर्षण है। कन्नूर का सबसे बड़ा आकर्षण है सिम्स पार्क। 1874 में बने इस उद्यान में सैर करते हुए पता ही नहीं चलेगा कि प्राकृतिक सुंदरता को निहारते हुए कितने घंटे गुजर गए हैं जहां हर रंग के फूल मौजूद हैं।
यहां से ऊटी का सफर भी बेहद खास हो जाता है यदि आप इसे निलगिरी माऊंटेन रेल से पूरा करें। इस ट्वॉय ट्रेन को विश्व धरोहरों में शामिल किया गया है। इसकी नीली रंग की बोगियां सुंदर चाय बगानों, ऊंची-नीची पहाड़ियों, 250 पुलों तथा 16 सुरंगों वाले एक बेहद नैसर्गिक इलाके से गुजरती हैं। इस ट्रेन का सफर एक जादुई अहसास है जो पहाड़ी ढलानों के चारों ओर घूमती हुई आगे बढती है।
हर मोड़ पर आपके सामने एक अलग ही शानदार नजारा होता है। कहीं आपको धुंध में घिरी कोई चोटी नजर आती है तो अगले ही मोड़ पर घास के मैदान या घरों से घिरी ढलानें आपका ध्यान अपनी ओर खींच लेंगी।
कई पर्यटक मेट्टूपलयम से कुन्नूर तक इस ट्रेन में सफर करनी पसंद करते हैं क्योंकि यही वह हिस्सा है जहां सबसे शानदार कुदरती दृश्यों से यात्रियों का सामना होता है। यह महाद्वीप में सबसे अधिक खड़ी ढलान वाली रेल लाइन है। 46 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए मेट्टूपलयम से सुबह 7.10 बजे चल कर ट्रेन लगभग पांच घंटे में अपने गंतव्य ऊटी तक पहुंचती है।
ऊटी की स्थापना 19वीं शताब्दी की शुरुआत में अंग्रेजों ने दक्षिण की तेज गर्मी से बचने के लिए हिल स्टेशन के रूप में की थी। आज भी यह दक्षिण भारतीय पहाड़ियों की रानी के नाम से मशहूर है। हालांकि, अब इस पहाड़ी शहर में खासी भीड़ है और ट्रैफिक भी किसी बड़े शहर से कम नहीं है। फिर भी ऊटी की खूबसूरती आपको यहां बार-बार आने के लिए मजबूर करती है। सुंदर घरों, औपनिवेशिक काल में बने गिरजाघरों था उद्यानों के अलावा भी यह हिल स्टेशन घरों में बनने वाले स्वादिष्ट पनीर तथा चॉकलेट के लिए भी प्रसिद्ध है जो अंग्रेजों द्वारा अपने पीछे छोड़ी गई कुछ विरासतों में शामिल हैं।
निलगिरी की खूबसूरत चोटियों को निहारने के लिए डोड्डाबेटा शिखर जाना उपयुक्त होगा। निलगिरी पर्वतों के इस सबसे ऊंचे बिंदू से सम्पूर्ण दक्षिणी पर्वतमाला नजर आती है। यह एक ऐसा नजारा है जिसकी यादें जिंदगी भर के लिए आपके दिल में बस जाती हैं।