इस गांव के साथ कई किंवदंतियां तथा कथाएं जुड़ी हैं। इस गांव को यह नाम कैसे मिला, इसके बारे में ही यहां कई प्रचलित कहानियां सुनी जा सकती हैं। कुछ लोग मानते हैं कि मणिपुर के माईबोंग समुदाय के लोग यहां आकर बस गए थे और इसीलिए इसे मायोंग पुकारा जाने लगा। अन्यों का दावा है कि इस नाम का उद्भव ‘मा-एर-ओंगो‘ शब्दे यानी ‘मां के एक हिस्से‘ से हुआ है।
मायोंग एक पहाड़ी व जंगली इलाका है जहां बड़ी संख्या में हाथी भी पाए जाते हैं। मणिपुरी भाषा में हाथी को मियोंग कहते हैं। कुछ लोगों का विश्वास है कि गांव का नाम इसी शब्द से बना है। इसके नाम को लेकर अन्य कई मान्यताएं तथा विश्वास भी प्रचलित हैं। ऐसा लगता है कि इस गांव के नाम सहित इससे जुड़ी हर चीज कहानियों के रहस्य में डूबी हुई है।
इस स्थान के पारम्परिक महत्त्व का पता इसी तथ्य से लगता है कि इसे देश की जादू-टोने की राजधानी माना जाता है। इस गांव की यात्रा कुछ ऐसे दुर्लभ तरीकों को देखने का अवसर दे सकती है जो आधुनिक जगत को अप्राकृतिक लग सकते हैं परंतु ये किसी को भी हिला देने में सक्षम हैं।
गांव में एक अनूठा उत्सव मायोंग-पोबित्र भी आयोजित किया जाता है जिसे जादू तथा वन्य जीवन के संगम के रूप में मनाया जाता है।
दिलचस्प है कि यहां रहने वालों को नहीं पता है कि यह स्थान जादू-टोने के लिए किस तरह से इतना लोकप्रिय हो गया अथवा यहां जादू-टोने का अभ्यास करने वाला पहला व्यक्ति कौन था? फिर भी अन्य विधाओं की ही तरह इस गांव में जादू-टोने की ‘कला’ तथा ‘हुनर’ एक पीढ़ी से दूसरी को मिलता रहा है।
खास बात है कि अनेक प्राचीन पांडुलिपियों में भी इस स्थान को काले जादू-टोने की धरती के रूप में बताया गया है। मन जाता है कि यहां ऐसी कई प्राचीन व दुर्लभ पांडुलिपियां भी हैं जिनमें ऐसे मंत्र है जो किसी भी व्यक्ति को अजेय बना सकते हैं परंतु आज तक इन मंत्रों को कोई समझ नहीं सका है। काले जादू का अभ्यास करने वालों को यहां बेज या ओजा कहते हैं। ये लोग बीमारियों को ठीक करने के लिए भी काले जादू का प्रयोग करते हैं क्योकि माना जाता है कि इन्हें आयुर्वेद का भी गहन ज्ञान होता है। पीठ का दर्द को खींच लेती है। यदि दर्द ज्यादा गम्भीर हो तो माना जाता है कि थाली बेहद गर्म होकर जमीन पर गिर जाती है।
हाथ देख कर भविष्य कथन करने से लेकर उपचार तक लगता है कि जैसे ये लोग सभी कुछ कर सकते हैं। कहते हैं कि पहले दूर-दूर से लोग यहां काला जादू सीखने आते थे। आज भी गांव में 100 जादूगरों का समुदाय है परंतु उनमें ज्यादातर गुजारे के लिए खेतों में काम करने को मजबूर हैं।
अफसोस की बात है कि सदियों से जादूगिरी के लिए प्रसिद्ध रहे इस गांव को वह आकर्षण नहीं मिल सका जो मिलना चाहिए था। फंड्स तथा अवसरों की कमी की वजह से इस गांव में जादूगिरी की कला पहले वाली लोकप्रियता खो रही है और ध्यान न दिया गया तो वह दिन भी दूर नहीं जब यह स्थान वह कला खो दे जो इसे खास बनाती है।
गांव में जादूगिरी को समर्पित एक म्यूजियम है। यहां काले जादू से संबंधित कई दुर्लभ व प्राचीन पांडुलिपियां प्रदर्शित हैं। गांव के साथ लगते पोबित्र वन्य जीव उद्यान में भारतीय गैंडों की सर्वाधिक सघन संख्या है जो इस गांव का एक अन्य आकर्षण है।