राजस्थान के शानदार किले
आमेर का किला (जयपुर):
एक पर्वत पर स्थित यह किला जयपुर का प्रमुख आकर्षण स्थल है। आमेर नगर की स्थापना बुनियादी तौर पर मीणा वंश द्वारा करवाई गई थी और आगे चल कर इस पर राजा मान सिंह का शासन हो गया था। यह किला हिंदू शैली की कलात्मक भवन निर्माण कला का सुंदर नमूना है। लाल चुना पत्थर तथा पत्थर तथा संगमरमर से बना यह किला शाही खानदानों की रिहायश थी।
चित्तौड़गढ़ का किला (चित्तौड़गढ़):
यह किला देश के सबसे बड़े किलों में से एक है और शायद यह राजस्थान का सर्वाधिक शानदार किला है। इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया जा चुका है। यह मेवाड़ की राजधानी था और आज यह चित्तौड़गढ़ नगर में पड़ता है। यह किला तथा चित्तौड़गढ़ शहर मिल कर सबसे बड़े राजपूतानासमारोह ‘जौहर मेला’ का आयोजन करते हैं। यह प्रति वर्ष जौहर की वर्षगांठ पर मनाया जाता है परन्तु इसे कोई खास नाम नहीं दिया गया। ऐसा माना जाता है कि रानी पद्मिनी ने यहीं पर जौहर किया था।
मेहरानगढ़ का किला (जोधपुर):
मेहरानगढ़ का किला भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है। वर्ष 1460 में राव जोधा द्वारा इसका निर्माण करवाया गया था। यह 120 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसके चरों तरफ से मोती दीवारों से घेरा गया है। इसकी सीमा के अंदर-अंदर शानदार उत्कीर्णन कला वाले कई महल स्थित हैं। शहर के निचे से इसकी ओर एक घुमावदार सड़क जाती है। इसके दुसरे गेट पर दुश्मनों द्वारा दागे तोप के गोलों के निशान अभी भी देखे जा सकते है। हॉलीवुड फिल्म ‘द डार्क नाइट राइजेज’ के कुछ भाग की शूटिंग यहीं की गई थी।
जैसलमेर का किला (जैसलमेर):
यह विश्व की सबसे बड़ी किलेबंदियों में से एक है। इसे राजपूत राजा रावल जैसल द्वारा 1156 ईस्वी में बनवाया गया था। उन्हीं के नाम पर इसका नाम रखा गया था। यह किला त्रिकुटा पर्वत पर थार मरुस्थल के रेतीले विस्तार में स्थित है। यह कई युद्धों का गवाह भी रहा है। इसकी पीले चुने पत्थर से बनी दीवारें दिन के समय शेर का आभास देती हैं, सूर्य डूबते ही शहद जैसी सुनहरी आभा देती हैं जिससे लगता है कि यह किला मरुस्थल के मध्य कहीं छुप-सा गया है। इसी कारण इसे सोनार किला भी खा जाता है।
नाहरगढ़ का किला (जयपुर):
इसका निर्माण जयपुर के संस्थापक महाराज सवाई जयसिंह द्वारा 1734 में करवाया गया था। अरावली पर्वतों पर स्थित अपनी किलेबंदी के कारण जयगढ़ के किले से जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि इसके निर्माण में राठौड़ राजकुमार नाहर सिंह भोमिया की आत्मा ने बाधा पैदा की थी। तभी इसके अंदर उन्हें समर्पित एक मंदिर का निर्माण करवाया गया था। सवाई राम सिंह द्वारा 1868 में इसका जीर्णोद्धार करवाया गया था।
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