दक्षिण-पूर्व पोलैंड का बेशचाडी राष्ट्रीय उद्यान भेड़ियों, जंगली भैंसों से भरा दूर तक फैला अछूता जंगल है।
Bieszczady National Park is the third largest national park in Poland, located in Subcarpathian Voivodeship in the extreme southeast corner of the country, bordering Slovakia and Ukraine.
1973 में स्थापित बेशचाडी राष्ट्रीय उद्यान पार्क 1992 से यूनेस्को (UNESCO) की ईस्ट कार्पेथियन बायोस्फीयर रिजर्व का हिस्सा है। बेशचाडी पहाड़ों की सबसे ऊंची चोटी टार्निका 1,346 मीटर तक जाती है।
बेशचाडी राष्ट्रीय उद्यान के एक हिस्से में ‘गैलेरिय नाद बेरेहामी’ नामक एक आर्ट गैलरी स्थित है। इसका अर्थ है ‘बेरेहामी नदी के तट पर स्थित कलादीर्घा’। सालों पहले अनेक कलाकारों ने इसकी स्थापना की थी जहां पर्यटक मूर्तियां, मुखौटे, पेंटिंग तथा इलाके के नक्शे तक खरीद सकते हैं।
इसके करीब ही रहते हैं विटकोव्स्की नामक कलाकार। नाक पर टिके चश्मे से देखते हुए वह सधे हाथों से लकड़ी को चाकू से छिलते हुए एक कलाकृति को रूप देते नजर आ जाते हैं। वह कहते हैं कि बेशक यहां भेड़िए घूमते हैं परंतु अधितकतर वे जंगल में छिपे रहते हैं।
जंगली भैंसों का आवास:
भेड़ियों के आलावा भालू, लाइन्क्स, जंगली बिल्लियां, ऊदबिलाव से लेकर जंगली भैंसे तक राष्ट्रीय उद्यान में रहते हैं। यूरोपीय जंगली भैंसों का 1963 में पोलैंड के इन जंगलों में फिर से छोड़ा गया था क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद अत्यधिक शिकार के चलते ये जंगल से लगभग खत्म हो गए थे।
इन विशाल तथा शक्तिशाली जानवरों को सुरक्षित दूरी से देखने के लिए यह एक उपयुक्त स्थान है। यहां एक स्थान पर जंगली भैंसों को जंगल में छोड़ने के लिए तैयार किया जाता है। वहां उनकी एक चिकित्सा जांच के बाद उन पर एक जी.पी.एस. ट्रांसमीटर लगाया जाता है।
जंगली भैंसें अधिकतर शांत रहते हैं। यदि जंगल में हाईकिंग के दौरान किसी जंगली भैंसे या उनके झुंड से सामना हो जाए तो शांत व्यवहार करना चाहिए और उनसे दूर रहना ही बेहतर होगा।
ये जानवर जंगल में वनस्पतियों और जीवों की विविधता बनाए रखने में मदद करते हैं क्योंकि वे काफी चरते हैं जिससे वे एक क्षेत्र को जंगल से मुक्त रखते हैं।
पोलिश इतिहास के स्याह पक्ष का गवाह है यह जंगल:
जंगल का कुछ हिस्सा आज भी वीरान है जिसकी वजह पोलिश इतिहास का एक स्याह पक्ष है। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साम्यवादी पोलैंड ने क्षेत्र में अल्पसंख्यकों को बर्दाश्त करने की नीति बंद करने का फैसला किया। अप्रैल 1947 में अनेक यूक्रेन वासियों के साथी ही ‘बॉसकोस’ तथा ‘लेमकोस’ जैसे स्थानीय निवासियों को अपनी जमीन छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। पोलिश सेना उन लोगों को यहां से हटाने पास आई जो यहां से जाना नहीं चाहते थे।
गुरिल्ला यूक्रेनी विद्रोही सेना के समर्थकों सहित यूक्रेनी तथा अन्य लोग जंगल में छिप गए। उनकी रसद आपूर्ति को काट दिया गया। क्षेत्र के बड़े हिस्से से लोगों को हटाया गया। कई घरों तथा गिरजाघरों को जबरदस्ती नई जगह स्थानांतरित करने के बाद जला दिया गया। आज भी जंगल में सैर करने वालों का सामना पुराने कब्रिस्तानों तथा बस्तियों के अवशेषों से हो जाता है। उलूक्ज में केवल लकड़ी का एक गिरजाघर आग से बच सका।
सैर-सपाटे के अनेक विकल्प:
इस इलाके की सैर के लिए पर्यटकों के पास कई विकल्प हैं। वे एक छोटी लाइन की रेलगाड़ी या घोड़े या साइकिल से यहां घूम सकते हैं। यह क्षेत्र छोटे घोड़ों ‘हकुल’के लिए प्रसिद्ध है। कुछ अस्तबल इन शांत तथा सधे पैरों से चलने वाले पहाड़ी घोड़ों पर सैर करने की सुविधा प्रदान करते हैं।
यानी सान नदी का जलस्तर ठीक हो तो पर्यटक घाटी के हरे-भरे मैदानों का आनंद लेने के लिए एक नौका भी किराए पर ले सकते हैं और बहाव के साथ नदी में आसानी से आगे बढ़ सकते हैं।
उत्तर की ओर सान नदी सोलिना जलाशय में मिलती है जो पोलैंड में सबसे बड़ा है। यहां कैम्पिंग साइट्स, होटल, वैलनैस सैंटर तथा खेल सुविधाएं मैजूद हैं।
इलाके की संस्कृति तथा परम्पराओं को करीब से देखने में रूचि रखने वालों के लिए भी यह स्थान उपयुक्त है।
16वीं शताब्दी के महल में संग्रहालय:
सानोक में एक ओपन-एयर म्यूजियम पोलिश-यूक्रेनी सीमा क्षेत्र का इतिहास प्रस्तुत करता है। रमणीय सान घाटी के ऊपर शहर में 16वीं शताब्दी के एक मध्ययुगीन महल में संग्रहालय में एक बड़ा संग्रह देखने लायक है। और आगे उत्तर की ओर 2003 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में जोड़े गए अनेक लकड़ी के गिरजाघर हैं। इनमें से एक हाकजो स्थित गिरजाघर 1388 में बना था जो गोथिक शैली में लकड़ी से बना यूरोप का सबसे बड़ा गिरजाघर है।