लिओनार्दो दा विंची का जन्म इटली के टस्कनी इलाके के खूबसूरत शहर विंची में हुआ था। उनकी 500वीं जयंती उनका शहर भी सुर्खियां बटोर रहा है।
देहात में ठहरते हैं पर्यटक:
12वीं शताब्दी वाले महल ‘कास्तेलो देई कोंटी गुईडी’ तथा ‘सांता क्रॉस चर्च’ वाले इस शांत पहाड़ी शहर की खास बात है कि इसने अपने मूल आकर्षण को आज भी संरक्षित रखा है। न तो यहां अधिक शोर-शराबा है और न ही पर्यटकों की बहुत अधिक भीड़ है।
निवासी भी शांत-जीवन के आदी हैं। चौक के आसपास रोजमर्रा की चींजें बेचने वाली दुकानें दोपहर के वक्त आराम के लिए बंद रहती हैं। वैसे 15,000 निवासीयों का यह छोटा शहर पर्यटकों की बड़ी भीड़ को सम्भालने में भी सक्षम नहीं है। यहां कोई बड़ा होटल नहीं है। शहर से बाहर देहात के खेतों की ओर स्थानीय लोग मुट्ठी भर कमरे किराए पर देते हैं जहां वे मेहमानों को स्वयं निकाला जैतून का तेल तथा घर की निकाली शराब परोसते हैं।
विशेष प्रदर्शिनी का आयोजन:
हालांकि, लिओनार्दो दा विंची की 500वीं जयंती पर विंची में भी एक विशेष प्रदर्शनी आयिजित की जाएगी जिसमें काफी पर्यटकों के पहुंचने की अपेक्षा है।
15 अक्तूबर से शुरू होने वाली इस प्रदर्शनी में लिओनार्दो दा विंची की सबसे पुरानी पेंटिंग्स में से एक ‘सैंटा मारिया डेला नेवे’ के लिए 1473 में बनाई लैंडस्केप ड्राइंग के साथ उनके सभी प्रकार के मॉडल, दस्तावेजों तथा स्कैच आदि को ‘म्यूजियो ल्योनार्दियानो’ में प्रदर्शित किया जाएगा।
अपने दौर में विंची की जिस नैसर्गिक सुंदरता को लिओनार्दो देखा करते थे वह आज भी बदली नहीं है। शायद तब यहां कम घर होंगे तथा उद्यान और गेहूं के खेतों के साथ परिदृश्य थोड़ा अधिक विविध रहा होगा परंतु फिर भी बहुत कुछ बदला नहीं है।
इन दिनों जैतून तथा अंगूर की बेलें आस-पास की पहाड़ियों पर उगाई जाती हैं।
लिओनार्दो म्यूजियम:
शहर में स्थित लिओनार्दो म्यूजियम के तीन हिस्से हैं। पहला – वह घर जहां उनका जन्म हुआ, दूसरा – ‘विला देल फेराल’ जहां उनकी सभी कलाकृतियों की एच.डी. प्रकृतियां प्रदर्शित हैं और तीसरा – महल में स्थित मुख्य संग्रहालय ‘पालाज्जिना उजिएली’ जो अभी भी निर्माणाधीन है।
जिस घर में लिओनार्दो का जन्म हुआ था, उसमें अब उनकी जीवनी एक मल्टीमीडिया फॉर्मेट में दिखाई जाती है। एंचियानो में पहाड़ी पर स्थित इस घर की सैर करवाने के लिए अक्सर टूर बसें पर्यटकों को यहां तक लाती हैं। एक नौकरानी तथा लेखा अधिकारी की नाजायज संतान के रूप में लिओनार्दो का जन्म 15 अप्रैल, 1452 को इसी घर में हुआ था। हालांकि, उसका पालन-पोषण उसके पिता के घर पर हुआ। करीब ही स्थित एक मार्ग का नाम लिओनार्दो की मां के नाम पर ‘वाया दे कैटरीना’ रखा गया है।
बरकरार है नैसर्गिक सुंदरता:
यह स्थान आज भी अनेक अद्दभुत दृश्यों से भरपूर है जो आज भी काफी कुछ उसी रूप में मौजूद है जिस रूप में लिओनार्दो ने इस इलाके को बनाया होगा। व्हाइट ग्रास लिली तथा बुलरश आज भी यहां उगती हैं। लिओनार्दो एक प्रकृतिविद्द भी थे और उन्होंने इन दोनों पौधों की विस्तृत ड्राइंग्स बनाई थीं। इसके अलावा ‘पादुले दी फुसिचियो’ नामक दलदली इलाके में रहने वाले 100 से अधिक पक्षियों का अध्ययन भी उन्होंने किया था। आज यह एक उद्यान है जहां अनेक प्रजातियों के पक्षी विचरण करते हैं जिन्हें निहारना हर किसी को मंत्रमुग्ध कर सकता है। ल्योनार्दो ने इसमें पानी भरने वाली आर्ना नदी का रास्ता बदल इस जमीन को सुखा कर अन्य कार्यों के लिए उपयोग करने पर विचार किया था। हालांकि, अच्छा रहा कि यह उन कई कामों में से एक था जिन्हें लिओनार्दो ने शुरू तो किया परंतु उन्हें अंजाम तक पहुंचाने में दिलचस्पी नहीं ली।