मुगल साम्राज्य की समाप्ति के बाद 1827 में इस पर बराड़ वंश के राजा पहाड़ा सिंह का कब्जा हो गया, जो मुगल शहंशाह अकबर के सबसे खास साथियों से माने जाते थे। 1849 में पहाड़ा सिंह की मौत के बाद उनके 21 वर्षीय पुत्र वजीर सिंह (1874-1898) को फरीदकोट सिख रियासत पर शासन करने का मौका मिला। महाराजा विक्रम सिंह ने श्री हरिमंदिर साहिब में गुरु के लंगर के इमारत का निर्माण करवाया तथा दरबार साहिब में बिजली के लिए 25 हजार रूपए खर्च किए। विक्रम सिंह के देहांत के बाद महाराज बलबीर सिंह (1898-1906) फरीदकोट के शक्तिशाली शासक के रूप में उभरे।
वर्ष 1906 से 1916 तक फरीदकोट रियासत में कौंसिल आफरिजैंसी का कब्जा रहा। 1916 में महाराजा बरजिंद्र सिंह ने फरीदकोट का कार्यभार संभाला। उन्होंने इसमें आलीशान इमारतों तथा बागों का निर्माण करवाया। इस समय दूसरा विश्व युद्ध छिड़ चुका था तथा महाराजा बरजिंद्र सिंह ने ब्रिटिश सरकार को 17 लाख रुपए कर्ज के रूप में दिए और उनके लिए हथियार, घोड़े, ऊंट तथा 2800 के करीब फौजी जवान भी भेजे जिस पर उनके ब्रिटिश सरकार से संबंध और भी अच्छे हो गए। महाराजा बरजिंद्र सिंह की इस सहायता से खुश होकर ब्रिटिश सरकार ने सम्मान के रूप में उनको उपाधि दी परंतु वह बहुत समय शासन नहीं कर सके तथा 1918-1934 तक फरीदकोट रियासत पर कौंसिल आफ एडमिनिस्ट्रेशन का काम चलाऊ प्रबंध रहा।
बराड़ वंश के अंतिम राजा हरिंद्रसिंह ने 17 अक्तूबर 1934 को फरीदकोट रियासत के राजा के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने अपने समय में इमारतों का निर्माण करवाया तथा उच्च शिक्षा के प्रबंध किए। कॉमर्स का कालेज पेशावर तथा दिल्ली के बाद अकेले फरीदकोट में ही मौजूद था। राजा हरिंद्र सिंह ने बरजिंद्रा कालेज, जूनियर बेसिक ट्रेनिंग स्कूल, विक्रम कालेज आफ कॉमर्स, खेतीबाड़ी कालेज, आर्ट तथा क्राफ्ट स्कूल के अलावा उस समय फरीदकोट रियासत में 8 हाई स्कूलों तथा हर गांव में एक प्राइमरी स्कूल सहित स्वास्थ्य केन्द्रों का निर्माण करवाया।
फरीदकोट में तीन दर्जन से ज्यादा खूबसूरत इमारतों के निर्माण ने यहां की भवन निर्माण कला को दुनिया में खूब प्रसिद्धि दिलाई। हालांकि समय बीतने से बहुत-सी ऐतिहासिक इमारतों का वजूद खत्म हो चुका है परंतु सचिवालय, विक्टोरिया टावर, लाल कोठी, आराम घर, अस्तबल, राज महल, शीशमहल, मोती महल, शाही किला, शाही समाधियां आदि इमारतें आज भी देखी जा सकती हैं। राजा हरिंद्र सिंह एक अच्छे प्रबंधक के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने अपनी रियासत में भीख मांगने पर पूर्ण तौर पर पाबंदी लगाई हुई थी तथा देश के बंटवारे के समय उन्होंने अपनी रियासत में एक भी दंगा, लूटपाट तथा कत्ल नहीं होने दिया। पाकिस्तान जाने वाले परिवारों को पूरी हिफाजत से भेजा गया।
महाराजा हरिंद्र सिंह ने अपने शासन के दौरान फरीदकोट सिख रियासत के बारे में वसीयत की थी, जिसमें उसने फरीदकोट रियासत की विरासती इमारतें, खजाना, जायदाद आदि संभालने के लिए महारावल खेवा जी ट्रस्ट की स्थापना की। आजकल यही ट्रस्ट फरीदकोट रियासत की विरासत को संभाल रहा है।
भारत सरकार ने 15 जुलाई, 1948 को फरीदकोट रियासत को खत्म करके एक लोकतांत्रिक सरकार का गठन कर दिया था। बाद में पंजाब सरकार ने इसका बड़ा हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया। महाराजा हरिंद्र सिंह इसके अंतिम शासक थे तथा उनका 16 अक्तूबर, 1989 को देहांत हो गया था। उनकी इकलौती पुत्री महारानी दीपइंद्र कौर का वर्धमान के राजा सदा सिंह महिताब से विवाह हुआ। इस रियासत का राज महल तथा शाही किला आज भी अपनी शताब्ती पुरानी दिखावट को सुरक्षित संभाल कर बैठा है। इसके अंदर आम लोगों के जाने पर पाबंदी है। राज महल अपने आप में दुनिया के खूबसूरत महलों में से एक है। शाही किले के तोशाखाने में रियासत के हथियारों सहित दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की खड्ग तथा ढाल आज भी पड़ी है।
Baba Farid Aagman Purab 2016 Documentary
इस शहर में बाबा फरीद जी की फेरी ने इसकी विरासत को दुनिया भर में प्रसिद्ध करने के लिए अहम योगदाम दिया है। बाबा फरीद जी की याद में बने टिल्ला बाबा फरीद में दुनिया भर से श्रद्धालु यहां आते हैं तथा उनकी याद में हर वर्ष 19 से 23 सितम्बर तक पांच दिवसीय आगमन पर्व मनाया जाता है। इस उत्सव ने भी फरीदकोट की अमीर विरासत को दुनिया से रू-ब-रू कराया है। पंजाब सरकार ने बाबा फरीद आगमन पर्व को विरासती मेले का दर्जा दिया है।
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि फरीदकोट रियासत की हद उसके वृक्षों से पहचानी जाती थी। जहां तक भी इसका शासन था, वहां तक इसके शासन द्वारा टाहलियों, आम तथा जामुन के बाग लगवाए गए थे। आज रियासत के सारे जंगलों में पहाड़ी कीकर ही बाकी रह गए हैं।